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हिंदी संप्रेषण/ध्वनि और वर्ण
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हिंदी भाषा में कुल 59 ध्वनियाँ स्वीकार की गई हैं। इस दृष्टि से हिंदी दुनिया की सर्वाधिक समृद्ध भाषाओं में एक है। विषय की सभी भाषाओं में प्रचलित प्रायः सभी ध्वनियाँ इसमें विद्यमान हैं।
इन ध्वनियों को मूल रूप से तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(1) स्वर (2) व्यंजन (3) अयोगवाह ध्वनियाँ
;(1) स्वर: स्वर उस ध्वनि को कहते हैं जिसका उच्चारण बिना किसी अन्य ध्वनि की सहायता के होता है। हिंदी भाषा में बारह स्वर हैं जिन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
;(1)मूल स्वर: अर्थात वे स्वर जिनका कोई विभाजन नहीं हो सकता। ये संख्या में चार है - अ, इ, उ,ऋ,।
;(2)दीर्घ स्वर: अर्थात एक ही मूल स्वर के दो बार जुडने से बनने वाले स्वर। ये भी संख्या में चार हैं।
आ(अ+अ), ऊ(उ+उ),
ई(इ+इ), ऋ(ऋ+ऋ)।
;(3) संयुक्त स्वर: अर्थात वे दीर्घ स्वर जो अलग-अलग स्वरों से मिलकर बने हों। ये भी संकया में चार हैं-
ए(अ+इ), ऐ(अ+ए), ओ(अ+उ), औ(अ+ओ)।
;(2) व्यंजन: व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण के लिए किसी अन्य ध्वनि (स्वर) की सहायता लेनी पड़ती है। स्वर के बिना व्यंजन पूर्ण नहीं होते। हिंदी में कुल 45 व्यंजन हैं जिनका कई आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है।
;(1) उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:
;कंठ्य: - क,ख,ग,घ,ङ,क़‚ख़‚ग़‚घ़‚ङ़‚ह,ह़‚
;तालव्य: - च,छ,ज,झ,ञ,च़,छ़,ज़‚झ़‚ञ़‚य,य़‚श,श़‚
;मूर्धन्य: - ट,ठ,ड,ढ,ण,ट़,ठ़,ड़,ढ़‚ण़,र,ष,ष़‚
;दंत्य: - त,थ,द,ध,न,त़‚थ़‚द़‚ध़‚ल,ल़‚ळ‚स,स़‚
;ओष्ठ्य: - प,फ,ब,भ,म,प़‚फ़‚ब़‚भ़,म़‚व‚व़‚
;श्रावणया: - ऩ‚ऱ‚ऴ‚ष़‚ॸ‚ॹ‚ॺ‚
;(2)अवरोध के आधार पर व्यंजनों के भेद: इस आधार पर व्यंजनों के तीन भेद किए जाते हैं- अंतस्थ, ऊष्म व स्पर्श।
;(अ) अंतस्थ व्यंजन: ये वे व्यंजन है जिसका उच्चारण स्वर और व्यंजन का मध्यवर्ती होता है। इन व्यंजनों में श्वास का अवरोध बहुत कम होता है। ऐसे व्यंजन चार है-य,र,ल,व,। य और व में यह प्रकृति अधिक है। इस विशेष योग्यता के कारण इन दोनों को 'अर्धस्वर' भी कहा जाता है।
;(ब) ऊष्म या संघर्षी व्यंजन: ये वे व्यंजन जिनके उच्चारण में विशेष रूप से स्वास का घर्षण होता हैं। वस्तुतः जीभ तथा होंठों के निकट आने के कारण इनके उच्चारण में वायु रगड़ खाती हुई बाहर निकलती है व इसी से संघर्ष/घर्षण होता है। ये संख्या में चार है। श,ष,स,ह।
;(स) स्पर्श व्यंजन: ये वे व्यंजन हैं जिनके उच्चारण में जीभ या निचला होंठ उच्चारण स्थान का स्पर्श करके वायु को रोकता है। इन व्यंजनों को उच्चारण स्थान के आधार पर पाँच वर्गों में पाँच-पाँच की संख्या में बाँटा गया है।
;क वर्ग-:क,ख,ग,घ,ङ,
;च वर्ग-:च,छ,ज,झ,ञ
;ट वर्ग-:ट,ठ,ड,ढ,ण
;त वर्ग-:त,थ,द,ध,न
;प वर्ग-:प,फ,ब,भ,म
ऊपर दिए गए 33 व्यंजन हिंदी में मूल रूप से स्वीकार किए गए हैं किन्तु विकास की प्रक्रिया में आठ और व्यंजन भी हिंदी में स्वीकृति हुए है। इसकी सूचना स्रोतों के साथ इस प्रकार है-
;(1): मराठी से : ळ
;(2): फारसी से : ॺ
;(3): अपभ्रंम से : क़,ख़,ग़,ङ़,ज़,झ़,ञ़,ड़,ढ़,ण़,ऩ,फ़,य़,ऱ,ऴ,व़,ह़
इन 41 व्यंजनों के अतिरिक्त हिंदी में चार संयुक्त व्यंजन स्वीकृत हैं-क्ष,त्र,ज्ञ,श्र।
इस प्रकार कुल 45 व्यंजन हिंदी भाषा में स्वीकृत किए गए हैं।
;व्यंजनों के अन्य वर्गीकरण: व्यंजनों को कुछ और आधारों पर भी वर्गीकरण किया जाता है। ऐसे तीन वर्गीकरण प्रमुख है।
;(क)-अल्पप्राण व महाप्राण व्यंजन:
;(ख)-अघोष व सघोष व्यंजन:
;(ग)-संयुक्त व्यंजन:
;(क)-अल्पप्राण व महाप्राण व्यंजनों: का अंतर उच्चारण में खर्च होने वाले श्वाश की मात्रा पर आधारित है। अल्परण व्यंजन वे व्यंजन है जिनमें ऊर्जा, श्वाश या वायु की मात्रा कम खर्च होती है। जबकि महाप्राण व्यंजन वे व्यंजन है जिनमें ज्यादा ऊर्जा, श्वाश या वायु खर्च होती है। एक सामान्य नियम यह है कि प्रायः अल्पप्राण ध्वनियों में ह् जोड़ दिया जाए तो वे महाप्राण बन जाती हैं, जैसे-
;क्+ह्=ख्:
;ग्+ह्=घ्:
हिंदी के वर्गीय व्यंजनों में पहले व तीसरे व्यंजन अल्पप्राण होते हैं, तथा दूसरे व चौथे व्यंजन महाप्राण। इसके अतिरक्त अंतःस्थ व्यंजन (य,र,ल,व) अल्पप्राण होते है जबकि ऊष्म व्यंजन (श,ष,स,ह) महाप्राण होते हैं।
;(ख)-अघोष व सघोष व्यंजन: का मूल अंतर यह है कि सघोष व्यंजन के उच्चारण में स्वरतंत्री के अधिक कंपन के कारण आवाज काफी भारी होती है जबकि अघोष व्यंजन में स्वरतंत्री के कम कंपन के कंपन के कारण आवाज अधिक भारी नहीं होती। हिंदी व्यंजनमाला में वर्गीय व्यंजनों में पहले दो व्यंजन अघोष व अंतिम तीन सघोष होते है। अंतस्थ व्यंजन सघोष है। अन्य व्यंजनों में 'ह' सघोष है जबकि 'श', 'ष' तथा 'स' अघोष है।
;(ग)-संयुक्त व्यंजन: दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से निर्मित होने वाले व्यंजनों का भी एक वर्ग है जिन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में चार संयुक्त व्यंजन हैं-क्ष,त्र,ज्ञ तथा श्र,जिनकी निर्मिती इस प्रकार है-
;क्ष-(क्+ष):
;त्र-(त्+र):
;ज्ञ-(ज्+ञ):
;श्र-(श्+र):
== म्भ स्थ व्य न्ड ल्ड ञ्ज ज्ज स्प स्फ म्प म्फ च्च च्छ ज्ड ञ्च क्श ख्श न्श त्श त्थ न्थ ल्थ क्थ प्थ म्थ न्ध ब्ध ज्ध म्ध ल्ध व्ध ब्भ ल्भ ज्भ प्च प्छ ब्झ ==
;(3) अयोगवाह ध्वनियाँ: ये वे ध्वनियाँ हैं जो न स्वर है न ही व्यंजन। ये स्वर इसलिए नहीं है कि इनकी स्वतंत्र गति नहीं और व्यंजन इसलिए नहीं है कि ये स्वरों के बाद आते हैं, उनसे पहले नहीं आते। ऐसी तीन ध्वनियाँ है।
(क) अनुस्वार (ख) अनुनासिक (ग) विसर्ग
;(क) अनुस्वार: अनुस्वार एक नासिक्य ध्वनि है। अनुस्वार का अर्थ है- अनु+स्वर, अर्थात् जो नासिक्य ध्वनियाँ स्वर के उच्चारण के बाद आती हैं जैसे गंगा (गड्गा)। अनुस्वार के रूप में वर्गीय व्यंजनों के संदर्भ में नियम यह है कि अनुस्वार अपने से बाद में आने वाले व्यंजन के वर्ग का ही पाँचवा व्यंजन होगा। उदाहरण के लिए,
गंगा>गङ्गा, खंभा>खम्भा, गंदा>गन्दा, गंजा>गञजा
;(ख) अनुनासिक: वह नासिक्य ध्वनि जो स्वर के स्वर के साथ जोड़कर बोली जाती है। इसके संकेत के रूप में अ, आ, के साथ चन्द्रबिन्दु तथा ए व ओ की मात्रा के साथ बिन्दु का प्रयोग किया जाता है, बाँस जोंक।
;(ग) विसर्ग: यह वह ध्वनि है कुछ तत्सम शब्दों में स्वर के बाद 'ह' रूप में उच्चारित होती है, जैसे दुख छः, प्रायः अतः आदि।
यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वर्णमाला में अनुस्वार और अनुनासिक ध्वनियों की गणना एक ध्वनि के रूप में ही की जाती है। इस प्रकार अयोगवाह ध्वनियाँ दो ही बचती हैं।
इस प्रकार हमने देखा कि हिंदी वर्णमाला में वर्णमाला में कुल 12 स्वर हैं, 45 व्यंजन हैं तथा दो अयोगवाह ध्वनियाँ है। ये सभी ध्वनियाँ परस्पर मिलकर 59 हो जाती है।
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सिलाई मशीन की शटल हुक का टाइमिंग, समस्या और समाधान/सिलाई मशीन की शटल हुक का टाइमिंग का मतलब
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उपशीर्षक और उपशीर्षक में एक पैराग्राफ जोड़ा गया।
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text/x-wiki
== सिलाई मशीन की शटल हुक का टाइमिंग का मतलब ==
सिलाई मशीन की शटल हुक की टाइमिंग का मतलब होता है, सुई में लगे हुए धागे को पकड़ कर शटल में लगा हुआ बॉबिन केस के अन्दर बॉबिन में भरे हुए धागे से मिला कर लूप बनाना।<ref>https://www.youtube.com/watch?v=K_oyuZfynYs</ref>
=== शटल हुक क्या है ===
शटल सिलाई मशीन का एक भाग होता है जिसे शटल कहते हैं और शटल हुक शटल के ऊपरी सतह पर एक तरह से हुक की तरह बना हुआ शटल का एक हिस्सा होता है जिसे शटल हुक कहते है, जिसके द्वारा सिलाई मशीन धागे से लूप बना कर कपड़े पर सिलाई करती है।
== संदर्भ ==
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