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मध्यकालीन भारत/तुगलक वंश
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[[File:Forced token currency coin of Muhammad bin Tughlak.jpg|thumb|मुहम्मद बिन तुगलक के वक्त के सिक्के]]
गयासुद्दीन तुगलक, जो अला उद दीन खिलजी के कार्यकाल में पंजाब का राज्यपाल था, 1320ई० में सिंहासन पर बैठा और तुगलक राजवंश की स्थापना की। उसने वारंगल पर विजय पाई और बंगाल में बगावत की। मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने पिता का स्थान लिया और अपने राज्य को भारत से आगे मध्य एशिया तक आगे बढ़ाया। मंगोल ने तुगलक के शासन काल में भारत पर आक्रमण किया किन्तु उन्हें भी हार मिली।<ref>{{cite book|first1=जमाल|last1=मलिक|title=Islam In South Asia|trans-title=दक्षिण एशिया में इस्लाम|date=2008|publisher=ब्रिल|location=नीदरलैण्ड|isbn=9789004168596| language = en}}</ref>
मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दक्षिण में सबसे पहले दिल्ली से हटाकर देवगिरी में स्थापित किया। जबकि इसे दो वर्ष में वापस लाया गया। राजधानी परिवर्तन के परिणामस्वरूप दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ, जिसने अंततः बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खोला। मुहम्मद तुग़लक़ ने 'दोकानी' नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। मुहम्मद तुगलक अपने पीतल के सिक्कों को चांदी के लिए पारित करने का आदेश दिया था। मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी (संभवतः 50 प्रतिशत), परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही। मुहम्मद तुग़लक़ ने कृषि के विकास के लिए ‘दिवाण-ए- अमीर कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। उसने एक बड़े साम्राज्य को विरासत में पाया था किन्तु वह कई प्रांतों को अपने नियंत्रण में नहीं रख सका, विशेष रूप से दक्षिण और बंगाल को। उसकी मौत 1351ई० में हुई और उसके चचेरे भाई फिरोज़ तुगलक ने उसका स्थान लिया। फिरोज तुगलक ने साम्राज्य की सीमाएं आगे बढ़ाने में बहुत अधिक योगदान नहीं दिया, जो उसे विरासत में मिली थी। उसने अपनी शक्ति का अधिकांश भाग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में लगाया। वर्ष 1338 ई० में उसकी मौत के बाद तुगलक राजवंश लगभग समाप्त हो गया। यद्यपि तुगलक शासन 1412 तक चलता रहा फिर भी 1398 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण को तुगलक साम्राज्य का अंत कहा जा सकता है।<ref>भारतवर्ष का इतिहास--ई. मार्सडेन, लाला सीताराम--पृष्ठ१०८</ref>
==सन्दर्भ==
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