विकिपुस्तक hiwikibooks https://hi.wikibooks.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.45.0-wmf.8 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिपुस्तक विकिपुस्तक वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता रसोई रसोई वार्ता विषय विषय चर्चा TimedText TimedText talk मॉड्यूल मॉड्यूल वार्ता लोक साहित्य/लोक गीत, लोक नाट्य, लोक कथा, लोक गाथा, लोकोक्ति 0 11420 82637 2025-07-03T08:00:37Z Nikki shaw 15004 ''''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया 82637 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। 7wgu7mx2rjj98alsa2c4v3am5o7bp3p 82638 82637 2025-07-03T08:02:53Z Nikki shaw 15004 82638 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। gu3b3xcsqcvl32grgntppbztn8puskd 82639 82638 2025-07-03T08:04:37Z Nikki shaw 15004 82639 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। a4oa2k8d2wq2kbg4wetdx0tesp1bv56 82640 82639 2025-07-03T08:10:09Z Nikki shaw 15004 82640 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। पुत्र के जन्म के बाद हिन्दू समाज में दूसरा महत्वपूर्ण संस्कार विवाह का माना जाता है। विवाह एक लंबी प्रक्रिया है तथा इसके पूरे होने में कई दिन तक का समय लगता है। विवाह संपन्न करते समय विभिन्न विधानों को ध्यान में रख कर कन्या पक्ष और वर पक्ष के यहां अलग अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। विवाह का एक गीत प्रस्तुत है - वर खोजु, वर खोजु ,वर खोजु रे बाबा अब भईलो बिहायन जोग ए अरे हमरा के बाबा सुनार वर खोजले हँसे जानि दुअरवा के लोग ए। इस गीत में पुत्री अपने पिता से आग्रह करते हुई कहती हैं कि उसके विवाह के लिए ऐसे वर की तलाश करें जिसे देखकर पास-पड़ोसी में रहने वाले लोग हँसे नहीं, सुन्दर वर की कल्पना करती हुई पुत्री पिता से दूसरे लोगों द्वारा मखौल करने का प्रसंग याद दिलाती है। i8bcso52i50o8f4iew0bet60y5xql32 82641 82640 2025-07-03T08:11:35Z Nikki shaw 15004 82641 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। पुत्र के जन्म के बाद हिन्दू समाज में दूसरा महत्वपूर्ण संस्कार विवाह का माना जाता है। विवाह एक लंबी प्रक्रिया है तथा इसके पूरे होने में कई दिन तक का समय लगता है। विवाह संपन्न करते समय विभिन्न विधानों को ध्यान में रख कर कन्या पक्ष और वर पक्ष के यहां अलग अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। विवाह का एक गीत प्रस्तुत है - वर खोजु, वर खोजु ,वर खोजु रे बाबा अब भईलो बिहायन जोग ए अरे हमरा के बाबा सुनार वर खोजले हँसे जानि दुअरवा के लोग ए। इस गीत में पुत्री अपने पिता से आग्रह करती हुई कहती हैकि उसके विवाह के लिए ऐसे वर की तलाश करें जिसे देखकर पास-पड़ोसी में रहने वाले लोग हँसे नहीं, सुन्दर वर की कल्पना करती हुई पुत्री पिता से दूसरे लोगों द्वारा मखौल करने का प्रसंग याद दिलाती है। a5l3sp9sswdh8b75vp0s90rp0sas806 82642 82641 2025-07-03T08:12:00Z Nikki shaw 15004 82642 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। पुत्र के जन्म के बाद हिन्दू समाज में दूसरा महत्वपूर्ण संस्कार विवाह का माना जाता है। विवाह एक लंबी प्रक्रिया है तथा इसके पूरे होने में कई दिन तक का समय लगता है। विवाह संपन्न करते समय विभिन्न विधानों को ध्यान में रख कर कन्या पक्ष और वर पक्ष के यहां अलग अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। विवाह का एक गीत प्रस्तुत है - वर खोजु, वर खोजु ,वर खोजु रे बाबा अब भईलो बिहायन जोग ए अरे हमरा के बाबा सुनार वर खोजले हँसे जानि दुअरवा के लोग ए। इस गीत में पुत्री अपने पिता से आग्रह करती हुई कहती हैकि उसके विवाह के लिए ऐसे वर की तलाश करें जिसे देखकर पास-पड़ोसी में रहने वाले लोग हँसे नहीं, सुन्दर वर की कल्पना करती हुई पुत्री पिता से दूसरे लोगों द्वारा मखौल करने का प्रसंग याद दिलाती है। संस्कारों की दृष्टि से मनुष्य के जीवन का अन्तिम संस्कार मृत्यु है। निर्गुण गीतों में पाँच प्राणवायु को पंचनदियां कहा गया है, जिसकी एक धारा प्राणधारा है, संसार रूपी मोहजाल से एकमात्र सत्गुरु ही छुड़ा सकते हैं- पाँच नदिया रामा एक बहइ धरवा रामा ताहि बीच कमल रे फुलायल हो रामा फूल लोढ़े गेली बारी सारी मोटा अटकल डारी गुरु बिन केऊ न छोड़ावेइ हो रामा। baggafugok0oau0zilmawmn91oj2vg4 82643 82642 2025-07-03T08:13:57Z Nikki shaw 15004 82643 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। पुत्र के जन्म के बाद हिन्दू समाज में दूसरा महत्वपूर्ण संस्कार विवाह का माना जाता है। विवाह एक लंबी प्रक्रिया है तथा इसके पूरे होने में कई दिन तक का समय लगता है। विवाह संपन्न करते समय विभिन्न विधानों को ध्यान में रख कर कन्या पक्ष और वर पक्ष के यहां अलग अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। विवाह का एक गीत प्रस्तुत है - वर खोजु, वर खोजु ,वर खोजु रे बाबा अब भईलो बिहायन जोग ए अरे हमरा के बाबा सुनार वर खोजले हँसे जानि दुअरवा के लोग ए। इस गीत में पुत्री अपने पिता से आग्रह करती हुई कहती हैकि उसके विवाह के लिए ऐसे वर की तलाश करें जिसे देखकर पास-पड़ोसी में रहने वाले लोग हँसे नहीं, सुन्दर वर की कल्पना करती हुई पुत्री पिता से दूसरे लोगों द्वारा मखौल करने का प्रसंग याद दिलाती है। संस्कारों की दृष्टि से मनुष्य के जीवन का अन्तिम संस्कार मृत्यु है। निर्गुण गीतों में पाँच प्राणवायु को पंचनदियां कहा गया है, जिसकी एक धारा प्राणधारा है, संसार रूपी मोहजाल से एकमात्र सत्गुरु ही छुड़ा सकते हैं- पाँच नदिया रामा एक बहइ धरवा रामा ताहि बीच कमल रे फुलायल हो रामा फूल लोढ़े गेली बारी सारी मोटा अटकल डारी गुरु बिन केऊ न छोड़ावेइ हो रामा। 2 .ऋतु संबंधी गीत : भारतीय साहित्य में छ : ऋतुओ - शिशिर,बसंत , ग्रीष्म , वर्षा, शरद तथा हेमंत का वर्णन पाया जाता है । इन्हीं ऋतुओं के आधार पर लोक जीवन में गीतों का प्रचलन है जैसे कजरी , चैता, फगुआ या होरी , बारहमासा, चौमासा आदि। bwnbtdcr96nq2xl3ut4h7kc07urpe7l 82644 82643 2025-07-03T08:26:35Z Nikki shaw 15004 82644 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। पुत्र के जन्म के बाद हिन्दू समाज में दूसरा महत्वपूर्ण संस्कार विवाह का माना जाता है। विवाह एक लंबी प्रक्रिया है तथा इसके पूरे होने में कई दिन तक का समय लगता है। विवाह संपन्न करते समय विभिन्न विधानों को ध्यान में रख कर कन्या पक्ष और वर पक्ष के यहां अलग अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। विवाह का एक गीत प्रस्तुत है - वर खोजु, वर खोजु ,वर खोजु रे बाबा अब भईलो बिहायन जोग ए अरे हमरा के बाबा सुनार वर खोजले हँसे जानि दुअरवा के लोग ए। इस गीत में पुत्री अपने पिता से आग्रह करती हुई कहती हैकि उसके विवाह के लिए ऐसे वर की तलाश करें जिसे देखकर पास-पड़ोसी में रहने वाले लोग हँसे नहीं, सुन्दर वर की कल्पना करती हुई पुत्री पिता से दूसरे लोगों द्वारा मखौल करने का प्रसंग याद दिलाती है। संस्कारों की दृष्टि से मनुष्य के जीवन का अन्तिम संस्कार मृत्यु है। निर्गुण गीतों में पाँच प्राणवायु को पंचनदियां कहा गया है, जिसकी एक धारा प्राणधारा है, संसार रूपी मोहजाल से एकमात्र सत्गुरु ही छुड़ा सकते हैं- पाँच नदिया रामा एक बहइ धरवा रामा ताहि बीच कमल रे फुलायल हो रामा फूल लोढ़े गेली बारी सारी मोटा अटकल डारी गुरु बिन केऊ न छोड़ावेइ हो रामा। 2 .ऋतु संबंधी गीत : भारतीय साहित्य में छ : ऋतुओ - शिशिर,बसंत , ग्रीष्म , वर्षा, शरद तथा हेमंत का वर्णन पाया जाता है । इन्हीं ऋतुओं के आधार पर लोक जीवन में गीतों का प्रचलन है जैसे कजरी , चैता, फगुआ या होरी , बारहमासा, चौमासा आदि। कजरी - सावन के महीने में भोजपुरी प्रदेश में जो गीत गाए जाते हैं वह कजरी है। कजरी का नामकरण श्रावण में गिरने वाले काजल जैसे बादलों की कालिमा के कारण हुआ है। कजरी का वर्ण विषय प्रेम है इसके अंतर्गत श्रृंगार के दोनों पक्ष संयोग और वियोग की झांकी मिलती है। पारिवारिक पृष्ठभूमि पर रचे गए इन गीतों में पति-पत्नी के पारस्परिक आचार व्यवहार का उल्लेख होता है। पति को जल्दी घर लौट आने की सलाह, जुआ खेलने से रोकना, वस्त्राभूषण की मांग, पीहर जाने का अनुरोध आदि  कजरी के मुख्य विषय हैं। कजरी का एक उदाहरण प्रस्तुत है अरे बाबा बहेला पुरवैया अब पिया मोरे सोवै हे हरी, कलिया चुनि-चुनि सेजिया सजवली संईयाँ सुतेल आधि रात होरी या फगुआ : होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों को फगुआ या होली कहते हैं। भोजपुरी प्रदेश में फगुआ गाने का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति के द्वार पर गांव की टोली आती है और दो दलों में विभक्त होकर बैठ जाती है। ढोलक, झांझ आदि की ध्वनियों के बीच दोनों दलों के गीत गूंजते हैं। होरी गीत का एक उदाहरण निम्नानुसार है - ब्रज में हरि होरी मचाई इत ते आवत नवल राधिका उत तें कुँवर कन्हाई हिलमिल फाग परस्पर खेलत सोभा बरनी न जाई। फागुन के गीतों में मादकता मस्ती , ललक और उन्माद मिलता है- फागुन मस्त महीना हो लाला अथवा, फगुआ तेरी अजब बहार रे। बारहमास : बारहमासा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है की इन गीतों में बारहों महीना का वर्णन किया जाता है। सूफी कवि जायसी ने अपने महाकाव्य पद्मावत में नागमती का विरह वर्णन बारहमासा की परिपाटी के आधार पर किया है। नागमती वियोग खंड में नागमती अपने प्रिय रतनसेन के वियोग में दारुण दु:ख पाती है। यहां दिखाया गया है कि ऋतु में परिवर्तन होता है परंतु नागमती का दु:ख कम होने के बजाय बढ़ता जाता है। जायसी ने नागमती के बिरहा का वर्णन आषाढ़ मास से आरंभ करके ज्येष्ठ मास में समाप्त किया है। बारहमासा का एक उदाहरण प्रस्तुत है चढ़ा असाढ़ गगन घन गाजा साजा विरह दुन्द दल बाजा सावन बरस मेह अतवानी मरन परी हौं बिरह झुरानी भरि भादों दुपहर अति भारी sa4kf8c9v3sqvkai3hhosc90needwmj 82645 82644 2025-07-03T08:28:42Z Nikki shaw 15004 82645 wikitext text/x-wiki '''लोक गीत''' लोकगीत' शब्द का अर्थ लोक में प्रचलित गीत, लोक निर्मित गीत अथवा लोक विषयक गीत हो सकते हैं। लोकगीतों में एक ओर तो ऐसे गीत होते हैं,जिसमें लोकजीवन के सभी तत्त्व अपने सम्पूर्ण गाम्भीर्य के संग मौजूद होते हैं तो दूसरी ओर लोकगीत ऐसे भी होते हैं जिनमें लोकमानस अपने मनोरंजन के समग्र उपकरण स्वयं जुटाता चलता हैं। इन दोनों प्रकार के गीतों में लोक-संस्कृति के विभिन्न तत्त्व एवं चरण परिलक्षित होते हैं, लोकगीत अपौरुषेय भी होते हैं। ऐसे गीतों की रचना स्त्रियों द्वारा होती है तथा इन्हें वे विविध धार्मिक एवं सामाजिक अनुष्ठानों एवं लोकाचारों के अवसरों पर गाती हैं। दूसरी ओर केवल पुरुषों द्वारा गाये जाने वाले गीत भी होते हैं। ये प्रायः लोकरंजक होते हैं और कभी कभी इसे स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर सामूहिक रूप में भी गाते हैं। इन लोकगीतों का सम्बन्ध समग्र लोकजीवन के सुख-दुःख के दोनों पक्षों से होता है, जिस प्रकार जीवन के प्रत्येक अनुष्ठान, रीति-रिवाज, विधि-विधान तथा लोकाचार के साथ कोई-न-कोई गीत गाया जाता है, उसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार उसके अनुकूलता-प्रतिकूलता के भी गीत होते हैं। लोकजीवन को समग्रता में अभिव्यक्त करने का एवं लोकजीवन की अभिव्यक्ति का इतना सशक्त माध्यम शायद ही दूसरा कोई हो। राम का मुकुट भीग रहा है" यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है, जो विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध "मेरे राम का मुकुट भीग रहा है" से उद्धृत है। यह गीत माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य और चिंता को दर्शाता है, खासकर जब बच्चे घर से दूर होते हैं। निबंध में, लेखक ने गीत के माध्यम से अपने बचपन की यादें साझा की है, जब उनकी दादी और नानी विदेश यात्रा से लौटने पर अक्सर यह गीत गाती थीं और कहती थीं कि "मेरे लाल को कैसा वनवास मिला था।" यह वाक्यांश, राम के वनवास से जोड़कर, बच्चों के लिए माता-पिता की चिंता और ममता को उजागर करता है। यह गीत न केवल राम के वनवास की कथा से जुड़ा है, बल्कि इसमें मनुष्य के अपने बच्चों के प्रति मातृत्व/पितृत्व भाव को भी दर्शाया गया है। मेरे राम का मुकुट भींग रहा है निबंध का एक प्रसिद्ध लोकगीत निम्नानुसार है: मोरे राम के भीजे मुकुटवा लछिमन के पटुकवा मोरी सीता के भीजै सेनुरवा त राम घर लौटहिं। भोजपुरी ग्रामीण समाज में प्रचलित तथा अप्रचलित गीतों का विराट भण्डार मौजूद है। अब तक जो लोकगीत उपलब्ध हुए हैं, उसकी समष्टि पर पूर्णतया विचार करके निम्नांकित दृष्टि से उन्हें मुख्य रूप से छः भागों में विभक्त किया गया है- 1. संस्कार संबंधित गीत: भारतीय जनमानस पर संस्कारों का बड़ा महत्व है। धार्मिक आचार्यों ने जीवन को नियंत्रित तथा नियमित करने के लिए सोलह प्रकार के संस्कारों की बात कही है जिनमें से छ: संस्कारों को ही समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं - जन्म , मुंडन , जनेऊ , विवाह , गवना और मृत्यु। इन छ: संस्कारों में भी केवल तीन प्रचलित है - पुत्र जन्म , विवाह और मृत्यु जिनका अनुसरण लोगों द्वारा किया जाता है। वैसे तो नवजात शिशु का आगमन ही हर्ष का विषय माना जाता किंतु नवजात शिशु अगर पुत्र है तो हर्ष की सीमा अपार हो जाती है । नवजात शिशु के जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को सोहर कहते है। सोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है। सोहर का एक उदाहरण निम्नानुसार है - अरे, अइसन मनोहर, मंगल मूरत सुहावन, सुंदर सूरत, हो ए राजा जी... ए राजा जी... ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो ए राजा जी, एकरे त रहल ह जरूरत, मुहूरत खूबसूरत, हो पंचायत सीरीज के लिए अनुराग सैकिया द्वारा लिखे गए इस सोहर ने न केवल गांव देहात में बल्कि नगरों में भी लोकप्रियता हासिल की है। इससे स्पष्ट होता है कि सोहर या लोक गीतों के प्रति न केवल ग्रामीण समाज का रुझान रहा है, बल्कि नगरीय समाज भी इन गीतों को गुनगुनाने में आनंद का अनुभव करते हैं। पुत्र के जन्म के बाद हिन्दू समाज में दूसरा महत्वपूर्ण संस्कार विवाह का माना जाता है। विवाह एक लंबी प्रक्रिया है तथा इसके पूरे होने में कई दिन तक का समय लगता है। विवाह संपन्न करते समय विभिन्न विधानों को ध्यान में रख कर कन्या पक्ष और वर पक्ष के यहां अलग अलग प्रकार के गीत गाए जाते हैं। विवाह का एक गीत प्रस्तुत है - वर खोजु, वर खोजु ,वर खोजु रे बाबा अब भईलो बिहायन जोग ए अरे हमरा के बाबा सुनार वर खोजले हँसे जानि दुअरवा के लोग ए। इस गीत में पुत्री अपने पिता से आग्रह करती हुई कहती हैकि उसके विवाह के लिए ऐसे वर की तलाश करें जिसे देखकर पास-पड़ोसी में रहने वाले लोग हँसे नहीं, सुन्दर वर की कल्पना करती हुई पुत्री पिता से दूसरे लोगों द्वारा मखौल करने का प्रसंग याद दिलाती है। संस्कारों की दृष्टि से मनुष्य के जीवन का अन्तिम संस्कार मृत्यु है। निर्गुण गीतों में पाँच प्राणवायु को पंचनदियां कहा गया है, जिसकी एक धारा प्राणधारा है, संसार रूपी मोहजाल से एकमात्र सत्गुरु ही छुड़ा सकते हैं- पाँच नदिया रामा एक बहइ धरवा रामा ताहि बीच कमल रे फुलायल हो रामा फूल लोढ़े गेली बारी सारी मोटा अटकल डारी गुरु बिन केऊ न छोड़ावेइ हो रामा। 2 .ऋतु संबंधी गीत : भारतीय साहित्य में छ : ऋतुओ - शिशिर,बसंत , ग्रीष्म , वर्षा, शरद तथा हेमंत का वर्णन पाया जाता है । इन्हीं ऋतुओं के आधार पर लोक जीवन में गीतों का प्रचलन है जैसे कजरी , चैता, फगुआ या होरी , बारहमासा, चौमासा आदि। कजरी - सावन के महीने में भोजपुरी प्रदेश में जो गीत गाए जाते हैं वह कजरी है। कजरी का नामकरण श्रावण में गिरने वाले काजल जैसे बादलों की कालिमा के कारण हुआ है। कजरी का वर्ण विषय प्रेम है इसके अंतर्गत श्रृंगार के दोनों पक्ष संयोग और वियोग की झांकी मिलती है। पारिवारिक पृष्ठभूमि पर रचे गए इन गीतों में पति-पत्नी के पारस्परिक आचार व्यवहार का उल्लेख होता है। पति को जल्दी घर लौट आने की सलाह, जुआ खेलने से रोकना, वस्त्राभूषण की मांग, पीहर जाने का अनुरोध आदि  कजरी के मुख्य विषय हैं। कजरी का एक उदाहरण प्रस्तुत है अरे बाबा बहेला पुरवैया अब पिया मोरे सोवै हे हरी, कलिया चुनि-चुनि सेजिया सजवली संईयाँ सुतेल आधि रात होरी या फगुआ : होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों को फगुआ या होली कहते हैं। भोजपुरी प्रदेश में फगुआ गाने का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति के द्वार पर गांव की टोली आती है और दो दलों में विभक्त होकर बैठ जाती है। ढोलक, झांझ आदि की ध्वनियों के बीच दोनों दलों के गीत गूंजते हैं। होरी गीत का एक उदाहरण निम्नानुसार है - ब्रज में हरि होरी मचाई इत ते आवत नवल राधिका उत तें कुँवर कन्हाई हिलमिल फाग परस्पर खेलत सोभा बरनी न जाई। फागुन के गीतों में मादकता मस्ती , ललक और उन्माद मिलता है- फागुन मस्त महीना हो लाला अथवा, फगुआ तेरी अजब बहार रे। बारहमास : बारहमासा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है की इन गीतों में बारहों महीना का वर्णन किया जाता है। सूफी कवि जायसी ने अपने महाकाव्य पद्मावत में नागमती का विरह वर्णन बारहमासा की परिपाटी के आधार पर किया है। नागमती वियोग खंड में नागमती अपने प्रिय रतनसेन के वियोग में दारुण दु:ख पाती है। यहां दिखाया गया है कि ऋतु में परिवर्तन होता है परंतु नागमती का दु:ख कम होने के बजाय बढ़ता जाता है। जायसी ने नागमती के बिरहा का वर्णन आषाढ़ मास से आरंभ करके ज्येष्ठ मास में समाप्त किया है। बारहमासा का एक उदाहरण प्रस्तुत है चढ़ा असाढ़ गगन घन गाजा साजा विरह दुन्द दल बाजा सावन बरस मेह अतवानी मरन परी हौं बिरह झुरानी भरि भादों दुपहर अति भारी कैसे भरों रथनि अँधियारी मन्दिर सून पिय अन्तहि बसा सेज नाग भइ दहि दहि डस 3 . व्रत संबंधी गीत: भारत में व्रत का विशेष महत्व है। भारत में विभिन्न प्रकार के व्रत मनाए जाते हैं - जैसे बहुरा, तीज, गोदना, नागपंचमी, छठ। इन अवसरों पर ईश्वर के प्रति अगाध विश्वास व्यक्त करते हुए विभिन्न प्रकार के गीत गाए जाते हैं। शीतला माता के पूजन के अवसर पर गाए जाने वाले गीत का उदाहरण प्रस्तुत है - निमिया की डाली मइया लावेली हिंडोरवा कि झूली झूली मइया गोवेली गीत की झूली झूली झूलत झूलत मइया लागल पियास कि चलि भइली, मलहोरिया के पास की चलि भइली। सूतल बाडू कि जागल ए मालिन विटिया चुलु एक, तनि पनिया पिलाव की चुलु एक। 4 . जाति संबंधी गीत: भारतीय समाज विभिन्न जातियों में विभक्त है। यहां विभिन्न जाति के लोग रहते हैं और इन लोगों के अपने-अपने गीत है। इन जातियों के बहुत से गीत जाति विशेष के कारण अस्तित्व में है। इन गीतों में बिरहा, मलहिया, अहीर, मल्लाह, चमार, नाई और कहार जाति के गीत है। बिरहा अहीर समाज में गया जाता है। बिरहा का अर्थ यहां विरह के गीत नहीं बल्कि गीत गाने की एक शैली विशेष है। लोकगीत में बिरहा आकार में सबसे छोटा किंतु अत्यंत प्रभावशाली होता है। रसवा के भेजली भंवरवा के संगिया रसवा ले अइले हा थोर ओतना ही रसवा में केकरा के बाटवो सगरी नगरी हित मोर। गाँवों में पावस आता है तो वहाँ के गरीबों को ओढ़ने-बिछाने के लिए ठौर नहीं मिलता, चरवाहा ऐसे समय बिरहा गाकर अपना दुःख भूलता है- मन तोरा अदहन, तन तोरा चाउर नयना मूँग की दालि अपने बलम के जेवना जेंवतिउ बिनु लकड़ी बिनु आगि । कम शब्दों में अधिक भाव भरना एवं सुनने वालों के हृदय पर सीधे चोट करना ही बिरहा का काम है। 5 . श्रम - संबंधी गीत: किसी काम को करते समय थकावट मिटाने के लिए जो गीत गाए जाते हैं,उसे श्रम संबंधी  गीत कहते हैं। मजदूरी के पेशे में जो लोग लगे होते हैं वह अपनी थकावट और एकरसता मिटाने के लिए गीत गाते हैं। स्त्रियां चक्की पीसते समय जो गीत गाती है उन्हें जाँत के गीत अथवा जंतसार कहते हैं। स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले गीतों में उनकी मानसिक व्यथा की अभिव्यक्ति होती है। धान के बीजों को रोपते समय जो गीत गाए जाते हैं उसे रोपनी के गीत कहते हैं। बिहार में रोपने के गीतों का बहुत चलन है - कबहीं त लवटी हैं मोर बनिजरवा पनही त तोहि के पिटइबो हो राम। 6. विविध गीत: उपयुक्त गीतों के अलावा ऐसे गीत भी प्रचलन में है जिन्हें समय और स्थान की परवाह नहीं होती। यद्यपि लोक साहित्य में ऐसे गीतों की संख्या बहुत कम है, तथापि यह लोक जीवन में प्रचलित है। झूमर , पूरबी, बटोहिया , वटगमनी आदि इसी प्रकार के गीत हैं। झूमर शब्द का अर्थ संभवत झूम झूम कर गाने से है। उत्साह एवं उमंग के साथ गाने के कारण झूमर को लोक जगत का पसंदीदा गीत कहा जाता है। झूमर में समाज में प्रचलित विसंगतियों का स्पष्ट चित्रण होता है साथ ही प्राकृतिक छटां एवं सौंदर्य का सरस वर्णन भी होता है। झूमर का एक उदाहरण प्रस्तुत है - छोटे मोटे पेड़वा ना फूले जाने हे ननदी ना फरे जाने हे ननदी पेड़वा त देव कटवाई सुन हे ननदी छोट मोट पियवा ना हँसे जाने हे ननदी ना बोले जाने हे ननदी पिवा के देब बन्हवाई सुन हे ननदी। विदेसिया या बटोहिया गीत की विधा भोजपुरी के प्रसिद्ध नाट्य कर्मी भिखारी ठाकुर की देन है। इसका एक उदाहरण निम्नानुसार है - काहे मोरी सुधि बिसराये रे बिदेसिया तड़पि तड़पि दिन रैनवा गँवायो रे काहे मोसे नेहिया लगाये रे बिदेसिया अपने तो कूबरी के प्रेम भुलाने रे मोहे लिख जोग पठाये रे बिदेसिया । kh4r80gql7m4q11au10gs9jj3tihh3m