विकिस्रोत hiwikisource https://hi.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4:%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.45.0-wmf.7 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिस्रोत विकिस्रोत वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता लेखक लेखक वार्ता अनुवाद अनुवाद वार्ता पृष्ठ पृष्ठ वार्ता विषयसूची विषयसूची वार्ता TimedText TimedText talk मॉड्यूल मॉड्यूल वार्ता साँचा:Index 10 185212 643317 643313 2025-06-28T13:25:06Z CptViraj 68 Requesting speedy deletion with rationale "No useful content". 643317 wikitext text/x-wiki <noinclude>{{Sdelete|1=No useful content}}</noinclude> {{Index | लेखक = सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' | शीर्षक = परिमल | वर्ष = 1930 | प्रकाशक = गंगा पुस्तकमाला कार्यालय, लखनऊ | स्रोत = डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया | छवियाँ = 253 | पृष्ठावली = <pagelist 1-10=-- 11-253=1-243 /> }} px8abmvcybbv95hmum9vec0v2p5vnfa हनुमान चालीसा 0 185213 643318 2025-06-29T08:56:18Z 2409:4089:8015:1247:0:0:1E13:E8AC यहां पर सम्पूर्ण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित मूल हनुमान चालीसा दी गई है https://archive.org/details/20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up 643318 wikitext text/x-wiki हनुमान चालीसा                   दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चार॥ भावार्थ: श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है। --- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥ भावार्थ: अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए। ---           चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ भावार्थ: हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है। --- राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं। --- महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥ भावार्थ: आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं। --- कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥ भावार्थ: आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं। --- हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। काँधे मूँज जनेउ साजे॥ भावार्थ: आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है। --- संकर स्वयं केशरी नंदन*। तेज प्रताप महा जग बंदन॥ भावार्थ: आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है। --- विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥ भावार्थ: आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। --- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥ भावार्थ: आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं। --- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ भावार्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया। --- भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥ भावार्थ: आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया। --- लाय संजीवन लखन जियाए। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥ भावार्थ: आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया। --- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ भावार्थ: श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।" --- सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ भावार्थ: श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया। --- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥ भावार्थ: सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं। --- जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ भावार्थ: यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥ भावार्थ: आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया। --- तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥ भावार्थ: आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है। --- जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ भावार्थ: एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया। --- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ भावार्थ: श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं। --- दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ भावार्थ: जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं। --- रामदुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता। --- सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥ भावार्थ: जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का? --- आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक ते काँपै॥ भावार्थ: आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं। --- भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥ भावार्थ: जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते। --- नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ भावार्थ: जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। --- संकट से हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥ भावार्थ: जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं। --- सब पर राम राज सिर ताजा**। तिन के काज सकल तुम साजा॥ भावार्थ: सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं। --- और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥ भावार्थ: जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है। --- चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥ भावार्थ: आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं। --- साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥ भावार्थ: आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं। --- अष्टसिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥ भावार्थ: आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया। --- राम रसायन तुम्हरे पासा। सादर रहो रघुपति के दासा***।। भावार्थ: आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें। --- तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥ भावार्थ: आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं। --- अंतकाल रघुबरपुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥ भावार्थ: अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है। --- और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ भावार्थ: अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं। --- संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ भावार्थ: जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं। --- यह शत बार पाठ कर जोई****। छूटहि बंदि महा सुख होई॥ भावार्थ: जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है। --- जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ भावार्थ: जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं। --- तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥ भावार्थ: तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए। ---                     दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥ भावार्थ: हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए। ntfduig9uw1bsse7msakgesgw62agxg 643319 643318 2025-06-29T09:16:12Z मनीष कुमार शुक्ला 6194 643319 wikitext text/x-wiki हनुमान चालीसा                   दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥ भावार्थ: श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हू, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है। --- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥ भावार्थ: अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए। ---           चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ भावार्थ: हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है। --- राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं। --- महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥ भावार्थ: आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं। --- कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥ भावार्थ: आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं। --- हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। काँधे मूँज जनेउ साजे॥ भावार्थ: आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है। --- संकर स्वयं केशरी नंदन*। तेज प्रताप महा जग बंदन॥ भावार्थ: आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है। --- विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥ भावार्थ: आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। --- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥ भावार्थ: आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं। --- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ भावार्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया। --- भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥ भावार्थ: आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया। --- लाय संजीवन लखन जियाए। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥ भावार्थ: आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया। --- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ भावार्थ: श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।" --- सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ भावार्थ: श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया। --- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥ भावार्थ: सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं। --- जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ भावार्थ: यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥ भावार्थ: आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया। --- तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥ भावार्थ: आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है। --- जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ भावार्थ: एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया। --- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ भावार्थ: श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं। --- दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ भावार्थ: जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं। --- रामदुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता। --- सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥ भावार्थ: जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का? --- आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक ते काँपै॥ भावार्थ: आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं। --- भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥ भावार्थ: जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते। --- नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ भावार्थ: जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। --- संकट से हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥ भावार्थ: जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं। --- सब पर राम राज सिर ताजा**। तिन के काज सकल तुम साजा॥ भावार्थ: सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं। --- और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥ भावार्थ: जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है। --- चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥ भावार्थ: आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं। --- साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥ भावार्थ: आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं। --- अष्टसिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥ भावार्थ: आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान 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प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं। --- तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥ भावार्थ: तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए। ---                     दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥ भावार्थ: हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए। 49nift4x42v1ddsf6ml6ikon70iglz2 643321 643319 2025-06-29T09:33:45Z 2409:4089:8015:1247:0:0:1E13:E8AC संशोधन 643321 wikitext text/x-wiki [[iarchive:20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up|हनुमान चालीसा]]                   दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥ भावार्थ: श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हू, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है। --- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥ भावार्थ: अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए। ---           चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ भावार्थ: हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है। --- राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं। --- महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥ भावार्थ: आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं। --- कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥ भावार्थ: आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं। --- हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। काँधे मूँज जनेउ साजे॥ भावार्थ: आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है। --- संकर स्वयं केशरी नंदन*। तेज प्रताप महा जग बंदन॥ भावार्थ: आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है। --- विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥ भावार्थ: आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। --- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥ भावार्थ: आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं। --- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ भावार्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया। --- भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥ भावार्थ: आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया। --- लाय संजीवन लखन जियाए। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥ भावार्थ: आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया। --- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ भावार्थ: श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।" --- सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ भावार्थ: श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया। --- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥ भावार्थ: सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं। --- जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ भावार्थ: यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥ भावार्थ: आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया। --- तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥ भावार्थ: आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है। --- जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ भावार्थ: एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया। --- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ भावार्थ: श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं। --- दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ भावार्थ: जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं। --- रामदुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता। --- सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥ भावार्थ: जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का? --- आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक ते काँपै॥ भावार्थ: आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं। --- भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥ भावार्थ: जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते। --- नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ भावार्थ: जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। --- संकट से हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥ भावार्थ: जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं। --- सब पर राम राज सिर ताजा**। तिन के काज सकल तुम साजा॥ भावार्थ: सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं। --- और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥ भावार्थ: जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है। --- चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥ भावार्थ: आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं। --- साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥ भावार्थ: आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं। --- अष्टसिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥ भावार्थ: आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया। --- राम रसायन तुम्हरे पासा। सादर रहो रघुपति के दासा***।। भावार्थ: आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें। --- तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥ भावार्थ: आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं। --- अंतकाल रघुबरपुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥ भावार्थ: अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है। --- और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ भावार्थ: अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं। --- संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ भावार्थ: जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं। --- यह शत बार पाठ कर जोई****। छूटहि बंदि महा सुख होई॥ भावार्थ: जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है। --- जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ भावार्थ: जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं। --- तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥ भावार्थ: तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए। ---                     दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥ भावार्थ: हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए। f4mxaytmoqum8xa02eo3iezhxk5cvb6 643322 643321 2025-06-29T09:36:35Z 2409:4089:8015:1247:0:0:1E13:E8AC संशोधन 643322 wikitext text/x-wiki <ref group="https://archive.org/details/20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up">[[iarchive:20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up|हनुमान चालीसा और संकटमोचन हनुमानाष्टक]]</ref>[[iarchive:20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up|हनुमान चालीसा]]                   दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥ भावार्थ: श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हू, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है। --- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥ भावार्थ: अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए। ---           चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ भावार्थ: हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है। --- राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं। --- महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥ भावार्थ: आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं। --- कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥ भावार्थ: आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं। --- हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। काँधे मूँज जनेउ साजे॥ भावार्थ: आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है। --- संकर स्वयं केशरी नंदन*। तेज प्रताप महा जग बंदन॥ भावार्थ: आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है। --- विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥ भावार्थ: आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। --- प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥ भावार्थ: आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं। --- सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ भावार्थ: आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया। --- भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥ भावार्थ: आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया। --- लाय संजीवन लखन जियाए। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥ भावार्थ: आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया। --- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ भावार्थ: श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।" --- सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ भावार्थ: श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया। --- सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥ भावार्थ: सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं। --- जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ भावार्थ: यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥ भावार्थ: आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया। --- तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥ भावार्थ: आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है। --- जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ भावार्थ: एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया। --- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ भावार्थ: श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं। --- दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ भावार्थ: जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं। --- रामदुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ भावार्थ: आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता। --- सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥ भावार्थ: जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का? --- आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक ते काँपै॥ भावार्थ: आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं। --- भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥ भावार्थ: जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते। --- नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ भावार्थ: जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। --- संकट से हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥ भावार्थ: जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं। --- सब पर राम राज सिर ताजा**। तिन के काज सकल तुम साजा॥ भावार्थ: सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं। --- और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥ भावार्थ: जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है। --- चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥ भावार्थ: आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं। --- साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥ भावार्थ: आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं। --- अष्टसिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥ भावार्थ: आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया। --- राम रसायन तुम्हरे पासा। सादर रहो रघुपति के दासा***।। भावार्थ: आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें। --- तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥ भावार्थ: आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं। --- अंतकाल रघुबरपुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥ भावार्थ: अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है। --- और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ भावार्थ: अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं। --- संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ भावार्थ: जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं। --- यह शत बार पाठ कर जोई****। छूटहि बंदि महा सुख होई॥ भावार्थ: जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है। --- जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ भावार्थ: जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं। --- तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥ भावार्थ: तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए। ---                     दोहा पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥ भावार्थ: हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए। adou48vxc6ktrsmr2879rspijpky69l वार्ता:हनुमान चालीसा 1 185214 643320 2025-06-29T09:21:38Z मनीष कुमार शुक्ला 6194 /* हनुमान चालीसा */ नया अनुभाग 643320 wikitext text/x-wiki == हनुमान चालीसा == https://archive.org/details/20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up [[सदस्य:मनीष कुमार शुक्ला|मनीष कुमार शुक्ला]] ([[सदस्य वार्ता:मनीष कुमार शुक्ला|वार्ता]]) ०९:२१, २९ जून २०२५ (UTC) cl4rklig2gea4b82smdcpzggccfqlsd