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{{Index
| लेखक = सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
| शीर्षक = परिमल
| वर्ष = 1930
| प्रकाशक = गंगा पुस्तकमाला कार्यालय, लखनऊ
| स्रोत = डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया
| छवियाँ = 253
| पृष्ठावली = <pagelist 1-10=-- 11-253=1-243 />
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हनुमान चालीसा
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2025-06-29T08:56:18Z
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यहां पर सम्पूर्ण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित मूल हनुमान चालीसा दी गई है https://archive.org/details/20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up
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text/x-wiki
हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चार॥
भावार्थ:
श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है।
---
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
भावार्थ:
अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए।
---
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
भावार्थ:
हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है।
---
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
---
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
भावार्थ:
आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं।
---
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
भावार्थ:
आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं।
---
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेउ साजे॥
भावार्थ:
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है।
---
संकर स्वयं केशरी नंदन*।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
भावार्थ:
आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है।
---
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
भावार्थ:
आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
---
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
भावार्थ:
आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं।
---
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भावार्थ:
आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया।
---
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
भावार्थ:
आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया।
---
लाय संजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
भावार्थ:
आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया।
---
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
भावार्थ:
श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।"
---
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
भावार्थ:
श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया।
---
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
भावार्थ:
सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं।
---
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
भावार्थ:
यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
भावार्थ:
आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया।
---
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
भावार्थ:
आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है।
---
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
भावार्थ:
एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया।
---
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
भावार्थ:
श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं।
---
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
भावार्थ:
जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं।
---
रामदुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
---
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
भावार्थ:
जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का?
---
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भावार्थ:
आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं।
---
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
भावार्थ:
जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते।
---
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
भावार्थ:
जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
---
संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
भावार्थ:
जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं।
---
सब पर राम राज सिर ताजा**।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
भावार्थ:
सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं।
---
और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
भावार्थ:
जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है।
---
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
भावार्थ:
आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं।
---
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
भावार्थ:
आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं।
---
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
भावार्थ:
आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया।
---
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सादर रहो रघुपति के दासा***।।
भावार्थ:
आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें।
---
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
भावार्थ:
आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं।
---
अंतकाल रघुबरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
भावार्थ:
अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है।
---
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
भावार्थ:
अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं।
---
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
भावार्थ:
जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
---
यह शत बार पाठ कर जोई****।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
भावार्थ:
जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है।
---
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भावार्थ:
जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं।
---
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
भावार्थ:
तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए।
---
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
भावार्थ:
हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
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मनीष कुमार शुक्ला
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हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
भावार्थ:
श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हू, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है।
---
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
भावार्थ:
अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए।
---
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
भावार्थ:
हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है।
---
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
---
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
भावार्थ:
आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
भावार्थ:
आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं।
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हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेउ साजे॥
भावार्थ:
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है।
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संकर स्वयं केशरी नंदन*।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
भावार्थ:
आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है।
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विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
भावार्थ:
आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
---
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
भावार्थ:
आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं।
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भावार्थ:
आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया।
---
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
भावार्थ:
आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया।
---
लाय संजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
भावार्थ:
आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया।
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रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
भावार्थ:
श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।"
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
भावार्थ:
श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
भावार्थ:
सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं।
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
भावार्थ:
यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
भावार्थ:
आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया।
---
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
भावार्थ:
आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है।
---
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
भावार्थ:
एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
भावार्थ:
श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं।
---
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
भावार्थ:
जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं।
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रामदुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
भावार्थ:
जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का?
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आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भावार्थ:
आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
भावार्थ:
जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते।
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नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
भावार्थ:
जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
---
संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
भावार्थ:
जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं।
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सब पर राम राज सिर ताजा**।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
भावार्थ:
सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं।
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और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
भावार्थ:
जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है।
---
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
भावार्थ:
आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं।
---
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
भावार्थ:
आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं।
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अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
भावार्थ:
आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया।
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राम रसायन तुम्हरे पासा।
सादर रहो रघुपति के दासा***।।
भावार्थ:
आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें।
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तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
भावार्थ:
आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं।
---
अंतकाल रघुबरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
भावार्थ:
अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है।
---
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
भावार्थ:
अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं।
---
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
भावार्थ:
जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
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यह शत बार पाठ कर जोई****।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
भावार्थ:
जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भावार्थ:
जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं।
---
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
भावार्थ:
तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए।
---
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
भावार्थ:
हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
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संशोधन
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दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
भावार्थ:
श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हू, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है।
---
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
भावार्थ:
अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए।
---
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
भावार्थ:
हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है।
---
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
---
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
भावार्थ:
आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं।
---
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
भावार्थ:
आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं।
---
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेउ साजे॥
भावार्थ:
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है।
---
संकर स्वयं केशरी नंदन*।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
भावार्थ:
आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है।
---
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
भावार्थ:
आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
---
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
भावार्थ:
आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं।
---
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भावार्थ:
आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया।
---
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
भावार्थ:
आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया।
---
लाय संजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
भावार्थ:
आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया।
---
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
भावार्थ:
श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।"
---
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
भावार्थ:
श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया।
---
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
भावार्थ:
सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं।
---
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
भावार्थ:
यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
भावार्थ:
आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया।
---
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
भावार्थ:
आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है।
---
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
भावार्थ:
एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया।
---
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
भावार्थ:
श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं।
---
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
भावार्थ:
जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं।
---
रामदुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
---
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
भावार्थ:
जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का?
---
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भावार्थ:
आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं।
---
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
भावार्थ:
जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते।
---
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
भावार्थ:
जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
---
संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
भावार्थ:
जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं।
---
सब पर राम राज सिर ताजा**।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
भावार्थ:
सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं।
---
और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
भावार्थ:
जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है।
---
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
भावार्थ:
आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं।
---
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
भावार्थ:
आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं।
---
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
भावार्थ:
आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया।
---
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सादर रहो रघुपति के दासा***।।
भावार्थ:
आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें।
---
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
भावार्थ:
आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं।
---
अंतकाल रघुबरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
भावार्थ:
अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है।
---
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
भावार्थ:
अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं।
---
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
भावार्थ:
जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
---
यह शत बार पाठ कर जोई****।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
भावार्थ:
जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है।
---
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भावार्थ:
जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं।
---
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
भावार्थ:
तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए।
---
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
भावार्थ:
हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, मंगलमय स्वरूप! श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
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संशोधन
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wikitext
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<ref group="https://archive.org/details/20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up">[[iarchive:20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up|हनुमान चालीसा और संकटमोचन हनुमानाष्टक]]</ref>[[iarchive:20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up|हनुमान चालीसा]]
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
भावार्थ:
श्रीगुरु के चरणकमलों की धूल से मैं अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करता हूँ और फिर श्रीरामजी के पवित्र यश का वर्णन करता हू, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है।
---
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
भावार्थ:
अपने बुद्धिहीन शरीर को जानकर मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, और मेरे कष्ट तथा दोषों को हर लीजिए।
---
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
भावार्थ:
हे हनुमानजी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरों के स्वामी! आपकी जय हो, आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है।
---
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के दूत और अतुलनीय बल के भंडार हैं। आप अंजना देवी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
---
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
भावार्थ:
आप महावीर, पराक्रमी और वज्रके समान शरीर वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करने वाले और शुभ बुद्धि के साथी हैं।
---
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
भावार्थ:
आपका रंग स्वर्ण के समान है, आप सुंदर वस्त्र पहनते हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले हैं।
---
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेउ साजे॥
भावार्थ:
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा (झंडा) शोभा पाते हैं। कंधे पर मूँज का जनेऊ धारण है।
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संकर स्वयं केशरी नंदन*।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
भावार्थ:
आप स्वयं भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और प्रताप बहुत महान है, जिससे संपूर्ण जगत आपकी वंदना करता है।
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विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
भावार्थ:
आप विद्या से संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
भावार्थ:
आप प्रभु श्रीराम के चरित्र को सुनने में प्रेम रखते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता – तीनों आपके हृदय में निवास करते हैं।
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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भावार्थ:
आपने सूक्ष्म रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप लेकर लंका को जला दिया।
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भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
भावार्थ:
आपने भीषण रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामजी के कार्यों को पूर्ण किया।
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लाय संजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
भावार्थ:
आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर लाए। इस पर श्रीरामजी हर्षित हो उठे और उन्होंने आपको हृदय से लगा लिया।
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रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
भावार्थ:
श्रीरामजी ने आपकी अत्यंत प्रशंसा की और कहा — "तुम मेरे लिए भरत के समान प्रिय हो।"
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
भावार्थ:
श्रीहरि ने कहा — "हजारों मुख तुम्हारी कीर्ति का गान करते हैं" — ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले लगा लिया।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
भावार्थ:
सनक, सनातन जैसे मुनिगण, ब्रह्माजी, नारदजी, सरस्वती देवी तथा शेषनाग भी आपकी महिमा का गान करते हैं।
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
भावार्थ:
यमराज, कुबेर और सभी दिक्पाल भी आपकी महिमा नहीं कह सकते। कवि और विद्वान भी उसका पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
भावार्थ:
आपने सुग्रीवजी पर महान उपकार किया। उन्हें श्रीराम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें वापस दिलवाया।
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तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
भावार्थ:
आपके सलाह और मंत्र को विभीषणजी ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने — यह बात पूरे जगत में प्रसिद्ध है।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
भावार्थ:
एक युग-सहस्त्र योजन (अर्थात् यहां एक युग का आशय ब्राह्म जी की उम्र है जो सौ वर्ष है तो युग=100 और सहस्र=1000 तो पृथ्वी से सूर्य की दूरी=100*1000=100000योजन।) स्थित सूर्य को आपने बाल्यकाल में मीठा फल समझ कर निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
भावार्थ:
श्रीराम की अंगूठी मुख में रखकर, आपने समुद्र लांघा — यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि आप सर्वशक्तिमान हैं।
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दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
भावार्थ:
जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके कृपा से सरल हो जाते हैं।
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रामदुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भावार्थ:
आप श्रीरामजी के द्वार पर रक्षक हैं। बिना आपकी अनुमति के वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
भावार्थ:
जो आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख पाता है। जब आप जैसे रक्षक हों, तब किसी को डर किस बात का?
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आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भावार्थ:
आप स्वयं ही अपने तेज को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि जब आप अपनी गर्जना करते हैं तो तीनों लोक कांप उठते हैं।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
भावार्थ:
जब कोई महाबली हनुमानजी का नाम लेता है, तब भूत-प्रेत और पिशाच पास भी नहीं फटकते।
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नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
भावार्थ:
जो वीर हनुमानजी का निरंतर जाप करता है, उसके रोग और सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
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संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
भावार्थ:
जो मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसे हनुमानजी संकटों से अवश्य छुड़ा देते हैं।
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सब पर राम राज सिर ताजा**।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
भावार्थ:
सब पर श्रीराम का सर्वोच्च राज है, और उनके सभी कार्य आपने (हनुमानजी) ने सिद्ध किए हैं।
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और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
भावार्थ:
जो कोई भक्त आपके पास जो भी इच्छा लेकर आता है, उसे अनंत जीवन फल की प्राप्ति होती है।
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चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
भावार्थ:
आपका प्रभाव चारों युगों में व्याप्त है, और आप संपूर्ण जगत को प्रकाश देने वाले हैं।
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साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
भावार्थ:
आप साधु-संतों के रक्षक हैं। राक्षसों का नाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं।
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अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
भावार्थ:
आप अष्टसिद्धि (आणिमा आदि) और नव निधियों के दाता हैं — ऐसा वरदान माता जानकी ने आपको दिया।
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राम रसायन तुम्हरे पासा।
सादर रहो रघुपति के दासा***।।
भावार्थ:
आपके पास श्रीराम का अमृतमय नाम है। आप सदा आदरपूर्वक श्रीराम के दास बने रहें।
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तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
भावार्थ:
आपका भजन करने से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं।
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अंतकाल रघुबरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
भावार्थ:
अंत समय में भक्त श्रीराम के धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में हरिभक्त कहलाता है।
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और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
भावार्थ:
अन्य देवताओं को मन में न धरें, केवल हनुमानजी की सेवा करें — वही सब सुख देने वाले हैं।
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संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
भावार्थ:
जो हनुमानजी बलवान का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
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यह शत बार पाठ कर जोई****।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
भावार्थ:
जो इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह बंदनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भावार्थ:
जो भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है — और इस बात के साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं।
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तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
भावार्थ:
तुलसीदास सदैव हरि के सेवक हैं। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास कीजिए।
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दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
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वार्ता:हनुमान चालीसा
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मनीष कुमार शुक्ला
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/* हनुमान चालीसा */ नया अनुभाग
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== हनुमान चालीसा ==
https://archive.org/details/20250615_20250615_1744/page/n5/mode/2up [[सदस्य:मनीष कुमार शुक्ला|मनीष कुमार शुक्ला]] ([[सदस्य वार्ता:मनीष कुमार शुक्ला|वार्ता]]) ०९:२१, २९ जून २०२५ (UTC)
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