भक्तामर स्तोत्र
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भक्तामर स्तोत्र का जैन धर्म में बडा महत्व है| आचार्य मानतुंग का लिखा भक्तामर स्तोत्र सभी जैन परंपराओं में सबसे लोकप्रिय संस्कृत प्रार्थना है|
इस स्तोत्र के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं||
श्री भक्तामर स्त्रोत
[ वसंततिलका छन्द ]
।। १ ।।
भक्तामर प्रणत मौलिमणि प्रभाणा
मुद्द्दोतकं दलित पाप तमोवितानम् ।
सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ।।
।। २ ।।
यः संस्तुतः सकल वाङ्मयतत्वबोधा
दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोक नाथैः ।
स्तोत्रैर् जगत्त्रितयचित्तरैरुदारैः
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ।।
।। ३ ।।
बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चिचपादपीठ
स्तोतुं समुद्यत-मतिर् विगत-त्रपोऽहम् ।
बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब
मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहितुम् ।।
।। ४ ।।
वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशांककानतान्
कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोपि बुद्दया |
कल्पान्त - काल - पवनोध्दत - नक्रचक्रं
को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ||
।। ५ ।।
सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !
कर्तुस्तवं विगतशक्तिरपि प्रव्रत्तः |
प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगी मृगेन्द्रं
नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ||
।। ६ ।।
अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहारधाम
त्वद्भक्तरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् |
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति
तच्चारु - चाम्र - कलिका निकरैकहेतु ||
।। ७ ।।
त्वत्संस्तवेन भवसंतति - सन्निबद्धं
पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् |
आक्रान्त - लोकमलिनीलमशेषमाशु
सूर्याशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ||
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